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नक्सलवादियों का होगा खात्मा! छत्तीसगढ़ भेजे जाएंगे 4000 से ज्यादा CRPF जवान; क्या 2026 तक खत्म हो जाएगा माओवाद?

यह देश को 31 मार्च 2026 तक पूरी तरह से नक्सलवाद से मुक्त करने की रणनीति का हिस्सा है।



गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों रायगढ़ में कहा था कि नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई अंतिम चरण में है और इसे खत्म करने के लिए कड़ी कार्रवाई जारी रहेगी। केंद्र नक्सलवाद (वामपंथी उग्रवाद) का खात्मा करने को प्रतिबद्ध है। बता दें कि वामपंथी उग्रवाद को कभी देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा कहा जाता था।


सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में 153 नक्सली मारे गए

देश के सबसे बड़े बल ने छत्तीसगढ़ में इन चार बटालियनों समेत 40 बटालियन तैनात की हैं। साथ ही कोबरा के जवान भी तैनात किए हैं। इस साल सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में 153 नक्सली मारे जा चुके हैं।आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि सीआरपीएफ ने झारखंड से तीन और बिहार से एक बटालियन को वापस बुलाया है और इन्हें छत्तीसगढ़ भेजा जा रहा है।



इनकी तैनाती प्रदेश की राजधानी रायपुर से करीब 450 से 500 किलोमीटर दक्षिण स्थित बस्तर क्षेत्र में की जाएगी। सीआरपीएफ को देश में प्रमुख आंतरिक सुरक्षा और नक्सल विरोधी अभियान बल के तौर पर जाना जाता है। झारखंड एवं बिहार में नक्सली हिंसा की स्थिति में काफी सुधार हुआ है और घटनाएं नगण्य हैं। इसलिए इन बटालियनों को वहां से हटाकर छत्तीसगढ़ में तैनात किया जा रहा है, जहां अब नक्सल विरोधी अभियान केंद्रित हैं। बता दें कि सीआरपीएफ की एक बटालियन में करीब 1,000 जवान होते हैं। सूत्रों ने बताया किइन इकाइयों को दंतेवाड़ा और सुकमा के दूरदराज के जिलों और ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के साथ लगती सीमा पर तैनात किया जा रहा है।



छत्तीसगढ़ में लगभग 40 एफओबी बनाए

दिल्ली में बल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ये बटालियनें सीआरपीएफ की कोबरा इकाइयों के साथ मिलकर जिलों के दूरदराज के इलाकों में और अधिक फारवर्ड ओपरेटिंग बेस (एफओबी) स्थापित करेंगी, ताकि क्षेत्र को सुरक्षित करने के बाद विकास कार्य शुरू किए जा सकें। पिछले तीन वर्षों में बल ने छत्तीसगढ़ में लगभग 40 एफओबी बनाए हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे बेस स्थापित करने में कई तरह की चुनौतियां आती हैं, जैसे कि नक्सलियों द्वारा जवानों पर घात लगाकर और विस्फोटक उपकरणों से हमला करना।



नई बटालियनें तैनात करने का उद्देश्य बस्तर के सभी ‘नो-गो’ क्षेत्रों में पैर जमाना है ताकि सरकार द्वारा तय की गई समय-सीमा के भीतर नक्सलवाद को समाप्त किया जा सके। हालांकि, एक अन्य अधिकारी ने बताया कि सीआरपीएफ बटालियनों को लगातार तकनीक, हेलीकाप्टर और संसाधन सहायता की आवश्यकता होगी, क्योंकि दक्षिण बस्तर नक्सल विरोधी अभियानों के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है।

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